Saturday, June 02, 2012

मुसाफिर



चलता जा रहा हू्ँ, चलता जा रहा हू्ँ,
रास्तॊ कॊ ढूँढतें, मंजिलो को तराश्ते,
साँसों को साँसों की डोर से जोङते,
चलता जा रहा हू्ँ।

कभी इस पर्बत के सहारे थम गया, कभी उस कंधे से सिर टिका दिया,
कभी आँसुऒं ने आँखओं को भिगा दिया, कभी हसी ने चेहरे को सूरजमुखी बना दिया,
ना आज रात नींद आई, ना दिन की शाम हूई,
बस कदमो के सहारे चलता जा रहा हू्ँ, चलता जा रहा हू्ँ।

कुछ मुसाफिर थे जो साथ चलने का वादा करते थे, कुछ राहगीर हैं जो साथ चलने की कसमे खाते हैं,
आज दिल में इसकी चाह हैं, आज दिल में ना जाने किसकी चाह हैं,
बस चलता जा रहा हू्ँ, चलता जा रहा हू्ँ।

किसीकी तलाश में, किन्ही आँखों ढूँढतें,
किसीको अपना बनाते, किसी सपने को पराया करते,
चलता जा रहा हू्ँ, चलता जा रहा हू्ँ।